न ठहरे किसी मंजिल पर शब होने तक
उर्दू /हिंदी लिहिल्या बद्दल क्षमस्व. गझल हा विषय अजून शिकतो आहे, तेंव्हा चूक असल्या वर माफी असावी
न ठहरे किसी मंजिल पर शब होने तक
कोई क्या लगाये इल्जाम हम पर सहर होने तक
क्यों जीए और कितना बेमक्सद है अब रतीब
मालाल ये है कि हुए रुखसत जफर होने तक
खंजर भी रोया होगा दिल से गुजरते वक़्त
खैर,
दोस्त क्या वो जो ना लगा हो सीने तक
क्या सोच रहे हो, सोए रहो अब बेनाम
न लौटेगी सांस सफर के खतम होने तक