सोड असले नाद सगळे |
केशवसुमार |
11 |
दिशा, वाट अन् `वाट' |
आपला अभिजित |
1 |
परीचे पशुधन |
धनंजय |
5 |
फासले ऐसेभी होंगे - भावानुवाद - असेल अंतर असेही... |
ॐकार |
14 |
मी एक परिस्थिती |
ऋषिकेश |
22 |
सांज.. |
प्राजु |
13 |
तीन पत्तीच्या खेळाची |
केशवसुमार |
31 |
प्रिया आज माझी.. |
सर्वसाक्षी |
13 |
वाद्यं |
नन्दु |
3 |
(काहीच्या) काही चारोळ्या |
आपला अभिजित |
11 |
(आपण...) |
केशवसुमार |
3 |
संध्याखंत - २ |
आजानुकर्ण |
17 |
कोल्हे वाण्याला कोकणी सल्ला |
धनंजय |
2 |
मला कसा हा म्हणतो मेला.... |
केशवसुमार |
8 |
माझी चिंतनिका |
युयुत्सु |
1 |
मद्यमैफलीस प्रारंभ करण्यापूर्वी म्हणायचा श्लोक. |
अविनाश ओगले |
7 |
संथ चालते मालिका ही... |
अविनाश ओगले |
8 |
झांज.. |
ऋषिकेश |
12 |
तू असता तर...! |
प्राजु |
5 |
"मैञीण" |
विवेकवि |
14 |
आपलं माणूस |
संगीता |
7 |
विडंबनः चाळीमधल्या खोलीमधली राजा आणिक राणी |
अविनाश ओगले |
22 |
भास |
गिरीशमित्र |
0 |
सुभाषित |
धोंडोपंत |
11 |
वाच पुस्तके |
अविनाश ओगले |
10 |
अपेक्षा |
अनिला |
6 |
कुणी मत देता का मत? |
विसोबा खेचर |
15 |
मिस्सळ मी चापतो, तर्रीची, मिस्सळ मी चापतो... |
अविनाश ओगले |
17 |
चेहर्याभोवती दाढी उमलत आहे ! |
केशवसुमार |
6 |
आई, तुला एकदाच हाक दिली तरी अब्जांनी धावून येशील |
सनिल पांगे |
5 |
आनंदयात्री.. |
प्राजु |
7 |
विरोप |
अनिला |
7 |
गद्य्-काव्य |
वेडा |
0 |
(झुलवा) |
केशवसुमार |
14 |
श्वासालाही उघाणं आलं. |
raje1981 |
0 |
धागा धागा जोडित्..(धागा-४) |
प्राजु |
46 |
" एकान्त " |
पेशवे बाजीराव तिसरे |
1 |
" निरंतर " |
पेशवे बाजीराव तिसरे |
1 |
किनारा.. |
पेशवे बाजीराव तिसरे |
8 |
" सखी " |
पेशवे बाजीराव तिसरे |
5 |
असंही प्रेम असतं!! |
तुमचा आनंद |
5 |
सुखाच्या शोधात.... (दु:ख)!!! |
छत्रपति |
5 |
पुण्याचे ट्रॅफिक...नाम॑जूर |
धमाल मुलगा |
22 |
मी शब्द ओठि रोखले... |
छत्रपति |
4 |
हे स्वप्ना तु स्वप्नात माझ्या येऊ नको......... |
छत्रपति |
0 |
आजच्या मुली |
छत्रपति |
5 |
शिघ्रकविता |
बहुरंगी |
8 |
सुंदर तलम रेशीम.. (धागा -३) |
प्राजु |
51 |
जाळण्या पूर्वी किंतींदा तुम्हीचं तर जाळलं होतं |
सनिल पांगे |
2 |
पुन्हा गंध आला...(गझल) |
बहुरंगी |
5 |
वीणीचा नवा धागा.... |
प्राजु |
69 |
आयुष्य तेच आहे |
सनिल पांगे |
22 |
ओळखलं तिने मला जागच्या जागी ती स्तब्द झाली |
सनिल पांगे |
3 |
शब्द! |
ऋषिकेश |
11 |
एक दिवा |
मनोज |
16 |
मधुशाला |
धोंडोपंत |
2 |
उड्डाण पूल |
इनोबा म्हणे |
1 |
शिक्षक दिन |
इनोबा म्हणे |
1 |
(कातरवेळी) |
केशवसुमार |
3 |
तूच नव्याने घडशील काय |
ऋषिकेश |
7 |
काय सांगू नवलाई |
इनोबा म्हणे |
1 |
मन... |
शब्दवेडा |
4 |
फुलराणी... |
प्राजु |
6 |
पाखरु : भाग १ (कविता) |
सागर |
4 |
विरूपिका (२) : भविष्य |
ॐकार |
1 |
तुझ्या एका शब्दासाठी |
सुवर्णमयी |
24 |
हात तुझा हातात...... |
अगस्ती |
11 |
विंदा करंदीकरांच्या विरूपिका - (१) २८ जानेवारी १९८० |
ॐकार |
5 |
समुद्रपक्षी |
स्वाती दिनेश |
7 |
नळ आणि सुंदरी |
ऋषिकेश |
10 |