राजेंद्र देवी in जे न देखे रवी... 17 Oct 2016 - 9:16 am नशीब... जागोजागी फाटले नशीब किती ठिगळे लावू विरणावर काय काय भोगले हे न आठवे नाही विश्वास आता स्मरणावर आयुष्यभर रडत होतो कोण रडेल माझ्या मरणावर आजवर जळत राहिलो तरी टाकिती सरणावर राजेंद्र देवी कविता माझीमुक्त कविताकवितामुक्तक प्रतिक्रिया ह्म्म... 17 Oct 2016 - 9:29 am | चांदणे संदीप विण्टरेस्टींग!! कसा पडलो या जगी माथी घेऊन निराशा स्वतः पाडाव्या लागती तळहातावर रेषा! Sandy धन्यवाद... 17 Oct 2016 - 10:38 am | राजेंद्र देवी धन्यवाद... खूप छान आशय आहे कवितेचा .... 17 Oct 2016 - 1:43 pm | कवि मानव खूप छान आशय आहे कवितेचा .... तुमच्या कवितेने ४ ओळी सुचल्या, हयात असता अंतर ठेवती, गर्जे मध्ये दुर सारिती, जिथे माणूस होतो "देव" मेल्यावर, काय तरी उपयोग अश्या जाण्यावर !! कमा 17 Oct 2016 - 2:27 pm | चांदणे संदीप ___/\___ घ्या! Sandy धन्यवाद... 17 Oct 2016 - 2:18 pm | राजेंद्र देवी धन्यवाद... :))) _/\_ 17 Oct 2016 - 2:30 pm | कवि मानव :))) _/\_ किमान शब्द कमाल आशय.... छान.. 22 Oct 2016 - 12:44 am | शार्दुल_हातोळकर किमान शब्द कमाल आशय.... छान.... धन्यवाद...शार्दुलजी... 22 Oct 2016 - 11:36 am | राजेंद्र देवी धन्यवाद...शार्दुलजी...
प्रतिक्रिया
17 Oct 2016 - 9:29 am | चांदणे संदीप
विण्टरेस्टींग!!
कसा पडलो या जगी
माथी घेऊन निराशा
स्वतः पाडाव्या लागती
तळहातावर रेषा!
Sandy
17 Oct 2016 - 10:38 am | राजेंद्र देवी
धन्यवाद...
17 Oct 2016 - 1:43 pm | कवि मानव
खूप छान आशय आहे कवितेचा .... तुमच्या कवितेने ४ ओळी सुचल्या,
हयात असता अंतर ठेवती,
गर्जे मध्ये दुर सारिती,
जिथे माणूस होतो "देव" मेल्यावर,
काय तरी उपयोग अश्या जाण्यावर !!
17 Oct 2016 - 2:27 pm | चांदणे संदीप
___/\___ घ्या!
Sandy
17 Oct 2016 - 2:18 pm | राजेंद्र देवी
धन्यवाद...
17 Oct 2016 - 2:30 pm | कवि मानव
:))) _/\_
22 Oct 2016 - 12:44 am | शार्दुल_हातोळकर
किमान शब्द कमाल आशय.... छान....
22 Oct 2016 - 11:36 am | राजेंद्र देवी
धन्यवाद...शार्दुलजी...