तिच्या पैंजनाची गाज,
त्यात रेंगाळे दुपार,
विसावल्या सतारीची
जणू छेडियली तार,
तिच्या कपाळी जी बट
त्याला कुंकवाची तीट,
लाल रेशमी लडीची,
तिच्या गालाशी लगट
तिच्या पाठीची पन्हाळ
त्यात घामाचा पाझर,
तिच्या नाजूक कटीला,
शोभे नाजूकसा भार..
तिच्या बाहूंचा मांडव,
लावी मदनाला वेड,
तिची महकती काया
तिचे ओझे अवघड..
सुस्त दुपारच्या वेळी,
ती येते का सामोरी,
मन हलते हलते,
त्याला सांभाळावे कोणी?
- शैलेंद्र.
प्रतिक्रिया
18 Sep 2019 - 10:16 am | रातराणी
सुरेख!!
(तीट तो आणि बट ती असते ना?
तिच्या कपाळी जी बट
"तिला कुंकवाचा तीट" अशी हवीय का ती ओळ?..)
18 Sep 2019 - 10:36 am | यशोधरा
नाही, कुंकवाची तीट योग्य आहे.
19 Sep 2019 - 2:04 am | रातराणी
अर्रर्रर्रर्र, परत शाळेत जायला पाहिजे मी (अजून दिवे लावायला ) :)
18 Sep 2019 - 10:28 am | जॉनविक्क
21 Sep 2019 - 12:28 pm | पाषाणभेद
दुपारच्या झोपेची आठवण झाली का?
18 Sep 2019 - 10:34 am | ज्ञानोबाचे पैजार
फारच आवडली
पैजारबुवा,
18 Sep 2019 - 10:37 am | यशोधरा
सुरेख लिहिलंय!
18 Sep 2019 - 11:01 am | प्रशांत
आवडेश
18 Sep 2019 - 11:43 am | शैलेन्द्र
सगळ्यांचे आभार
18 Sep 2019 - 11:45 am | पद्मावति
आहा...सुरेख.
18 Sep 2019 - 10:58 pm | दुर्गविहारी
खुपच छान!
18 Sep 2019 - 11:04 pm | जालिम लोशन
सुदंर.
18 Sep 2019 - 11:04 pm | जालिम लोशन
सुंदर
18 Sep 2019 - 11:16 pm | जव्हेरगंज
वाहवा!!
19 Sep 2019 - 4:21 am | चांदणे संदीप
मस्त! बऱ्याच दिवसांनी चांगली कविता वाचायला मिळाली.
Sandy
19 Sep 2019 - 8:32 am | प्रचेतस
उत्कट आणि उत्कृष्ट
21 Sep 2019 - 2:12 pm | श्वेता२४
उत्तम वर्णन
21 Sep 2019 - 3:40 pm | सस्नेह
लाडिक आणि लडिवाळ :)
22 Sep 2019 - 12:47 pm | जव्हेरगंज
22 Sep 2019 - 2:18 pm | पद्मावति
वाह मस्तंच. सुंदर टिझर.
23 Sep 2019 - 10:09 am | राघव
भारी!! :-)
26 Sep 2019 - 3:00 pm | गणेशा
एकदम सुरेख..
खुप दिवसानी इतकी सुंदर कविता वाचली आहे मी.
वा
27 Sep 2019 - 10:35 am | प्राची अश्विनी
सुरेख.