पाषाणभेद in जे न देखे रवी... 24 Oct 2021 - 10:05 pm तांबडा का तो चंद्र नभीचा का न असे नेहमीचा चंदेरी ओळख असूनी अनोळखी प्रित लपवीत रागावली स्वारी फुले कळ्या घेवून पाने मी एकटी उभी कधीची वाट पाहूनी रात्र संपली पहाट उजाडली नभाची - पाषाणभेद २४/१०/२०२१ प्रेम कविताकविताप्रेमकाव्य प्रतिक्रिया भारी 25 Oct 2021 - 6:34 am | प्रचेतस भारी सुंदर 25 Oct 2021 - 6:43 am | Bhakti सुंदर
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