नको तेच ते तू दुबारा करु
हवा देउनी मज निखारा करु!
भिजू दे मला तू मिठीशी तुझ्या
पुन्हा पावसाला इशारा करु!
नको मोकळे केस झटकून तू
इथे चांदण्याचा पसारा करु!
खुले केस पाठीवरी सोड ना
खुळ्या मोगऱ्याचा पिसारा करु!
तुझ्या पाउली चंद्र उतरेल तो
कसा मी मला सांग तारा करु!
सखे लाट अनिवार होवून,ये
अता थेंब-थेंबा किनारा करु!
शमावी क्षणातच जिथे वादळे
घराला मनांचा उबारा करु!
—सत्यजित
प्रतिक्रिया
27 Jun 2017 - 9:14 am | अत्रुप्त आत्मा
व्वाह! फंटॅश्टिक!
27 Jun 2017 - 11:11 pm | सत्यजित...
धन्यवाद!
27 Jun 2017 - 5:47 pm | जेनी...
:)
27 Jun 2017 - 11:14 pm | सत्यजित...
पण माफ करा,आपला प्रतिसाद उमगला नाही.
27 Jun 2017 - 11:49 pm | जेनी...
ह्म्म
29 Jun 2017 - 2:50 pm | पुंबा
अहाहा!!
अप्रतिम कविता..
29 Jun 2017 - 3:48 pm | पद्मावति
सुंदर!
30 Jun 2017 - 12:45 am | रुपी
सुरेख!
2 Jul 2017 - 12:34 am | सत्यजित...
सौरा,पद्मावति,रुपी...प्रतिसादाबद्दल मनापासून धन्यवाद!