राजेंद्र देवी in जे न देखे रवी... 29 Sep 2016 - 10:00 am काजळरेषा का भिरभिरते नजर तुझी? ओलांडू नको रेषा काजळाची वाटत नाही का भीती कोणा रावणाची ठेव जाणीव लक्ष्मणाच्या वचनांची नको देऊस कष्ट वनवासी रामाला नको देऊस प्रश्न या समाजाला अग्निदिव्य शेवटी तुलाच आहे भूमीत जन्म अन भूमीतच शेवट आहे राजेंद्र देवी कविता माझीमुक्त कविताकवितामुक्तक प्रतिक्रिया मस्त! 29 Sep 2016 - 10:01 am | मिसळलेला काव्यप्रेमी मस्त! धन्यवाद... 29 Sep 2016 - 1:24 pm | राजेंद्र देवी धन्यवाद... मस्त 29 Sep 2016 - 11:41 am | फिझा आवडली धन्यवाद... 29 Sep 2016 - 1:24 pm | राजेंद्र देवी धन्यवाद...
प्रतिक्रिया
29 Sep 2016 - 10:01 am | मिसळलेला काव्यप्रेमी
मस्त!
29 Sep 2016 - 1:24 pm | राजेंद्र देवी
धन्यवाद...
29 Sep 2016 - 11:41 am | फिझा
आवडली
29 Sep 2016 - 1:24 pm | राजेंद्र देवी
धन्यवाद...