रात्रीस खेळ चाले....
गूढं त्या महाली
केस सोडून ती बसलेली
काळा मिट्ट अंधार अन
काजव्याने पण मान टाकलेली
अचानक एक टिटवी ओरडली
आढ्याशी भुते खदखदली
वारा नव्हता तरी अचानक
तावदानाची दारे खडखडली
रात्र खूपं वाढलेली
कोल्हे कुत्री केकाटली
झरोक्यातून सावली उतरली
मांजराने बाहुली पळवली....
राजेंद्र देवी
प्रतिक्रिया
9 Sep 2016 - 11:38 am | जव्हेरगंज
क्या बात है!
भारी लिहिलय की!!
9 Sep 2016 - 2:26 pm | महासंग्राम
+११११११
9 Sep 2016 - 3:44 pm | राजेंद्र देवी
धन्यवाद...
9 Sep 2016 - 11:52 am | पथिक
भारी!
9 Sep 2016 - 1:10 pm | राजेंद्र देवी
धन्यवाद...
9 Sep 2016 - 1:23 pm | सिरुसेरि
थरारक वर्णन
9 Sep 2016 - 5:45 pm | वेल्लाभट
पाचोळा सैरावैरा.....
वारा सुसाट वाहे....
9 Sep 2016 - 6:06 pm | ज्योति अळवणी
भय कथा माहित आहे... भय कविता पहिल्यांदा वाचली. छान आहे
12 Sep 2016 - 9:17 am | चांदणे संदीप
याआधी इथे एका प्रतिसादात लिहिले होते
http://www.misalpav.com/comment/765030#comment-765030
12 Sep 2016 - 9:05 am | राजेंद्र देवी
धन्यवाद... रहस्य कविता पण म्हणु शकतो... :)
12 Sep 2016 - 9:10 am | चांदणे संदीप
कविता ठीकच.... जरा शब्दक्रम वगैरे बदलून लयीत आणता आली तर पहा!
Sandy
12 Sep 2016 - 9:29 am | अत्रुप्त आत्मा
छान आहे..
अ वांतर~वाचताना पांडूलेखाची आठवण आली!
स मांतर~ पांडूला आवडेल ही जिल्बी. ;)