सकाळी लगबगं
भाकऱ्या चुलीवरं
धुराड्यात खोकते
ही कैदाशिनं.
सडा सारवनं
धारोष्ण दुध
न्हावुन झाली
ही अवदसा.
धनी शेतावरं
हंबरते वासरु
भारा ऊचलाया
ही सटवायी.
पाखरु आभाळी
झळुनिया ऊनं
फिरे रानोमाळी
ही जोगतीनं.
आवसं पुनवं
संसार सुखाचा
माहेरची ओढ
रूते काळजातं.
प्रतिक्रिया
16 Sep 2015 - 8:53 pm | लालगरूड
+1
16 Sep 2015 - 8:57 pm | शुचि
:(
16 Sep 2015 - 9:07 pm | जव्हेरगंज
आवडली नाही का? की समजली नाही? की रडू कोसळले... :-(
16 Sep 2015 - 9:39 pm | शुचि
आवडली.
16 Sep 2015 - 11:11 pm | अत्रुप्त आत्मा
आवडलीच.
16 Sep 2015 - 11:15 pm | एक एकटा एकटाच
मस्तच
+१
17 Sep 2015 - 9:02 pm | निनाव
Khoopach sundar. Khoop emotional karnaari Kavita.
17 Sep 2015 - 10:42 pm | पैसा
हम्म..
18 Sep 2015 - 9:33 am | जव्हेरगंज
नुसतच हम्म..
काय समजावे आम्ही.. :)