पाऊस
गारवा
संध्याकाळ
निवांतपणा
गुलजार-बिलजार
सगळं आहे
.
.
.
.
कागद मात्र....कधीचा कोरा
काही शब्द
एखाद् दुसरी ओळ फार तर फार....बास्स
तडफड
थोडीशी भिती
जमणार आहे की नाही?
पेन टेकवायचं कागदाला नुसतंच...अनेकवेळा
छ्या...
तुला नाही तर त्या पारिजातकाला,
विचारलंच पाहीजे एकदा
कसं जमतं रोज बहरून येणं?
प्रतिक्रिया
30 Jul 2015 - 12:03 pm | मिसळलेला काव्यप्रेमी
क ड क
अवांतरः
अगदी खरयं..
30 Jul 2015 - 12:24 pm | पद्मावति
....सुरेख.
30 Jul 2015 - 12:38 pm | जडभरत
हं मस्तय!!!
30 Jul 2015 - 1:01 pm | मधुरा देशपांडे
सुंदर!
30 Jul 2015 - 1:08 pm | सुचेता
जमलय अगदि
30 Jul 2015 - 10:00 pm | सस्नेह
खासच !
31 Jul 2015 - 11:01 pm | एस
'रायटर्स ब्लॉक' छान रंगवलाय.
1 Aug 2015 - 12:09 am | अत्रुप्त आत्मा
आवडली.
1 Aug 2015 - 12:14 am | माम्लेदारचा पन्खा
मनातलं योग्य शब्दात लिहिणं ही फार मोठी कला आहे
11 Aug 2015 - 4:56 pm | राघव
छान.. आवडले! :)
11 Aug 2015 - 5:34 pm | राजेंद्र मेहेंदळे
मस्त आहे!
11 Aug 2015 - 11:39 pm | धनावडे
+११११११११११११११११११११११११११
12 Aug 2015 - 3:13 am | प्यारे१
आह! खास....
तिचं किंवा पारिजातकाचं उत्तर असं असू नये कधीच-
वाटतो/ते ना तुला बहरल्याप्रमाणे?
वा-ट-तो/ते ना तुला बहरल्याप्रमाणे...
जमते अताशा मलाही तोल सांभाळणे,
का दाखवावे जगा घाव माझ्या उरीचे
उगा देखले फुंकारणे अन मागून हासणे
12 Aug 2015 - 12:57 pm | मिसळलेला काव्यप्रेमी
मस्त प्यारेभाउ
प्रगती आहे ;)
13 Aug 2015 - 12:35 am | चाणक्य
13 Aug 2015 - 12:36 am | चाणक्य
जमलंय...
13 Aug 2015 - 12:48 am | प्यारे१
@ चाणक्य
@ मिकासेठ,
धन्स.
13 Aug 2015 - 12:48 am | प्यारे१
@ चाणक्य
@ मिकासेठ,
धन्स.
13 Aug 2015 - 7:36 pm | पद्मश्री चित्रे
वा ! छान कविता.
13 Aug 2015 - 9:19 pm | यशोधरा
वा!