अनन्त्_यात्री in जे न देखे रवी... 17 Dec 2022 - 2:36 pm कालचक्र उलटे फिरले अन् पुन्हा जन्मलो जुन्या चुका विसरून नव्याने करून बसलो काचपात्र भंगले तरीही जोडत बसलो मुखवट्यांस समजलो चेहरे तिथेच फसलो अढळपदी उल्का बघताना जरी कोसळलो डोळे कितिदा आले भरूनी तरीही हसलो बेचिराख होता होता मग पुनश्च रुजलो कवितामुक्तक प्रतिक्रिया वा ! 24 Dec 2022 - 4:28 pm | कुमार१ आवडली.
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