अनन्त्_यात्री in जे न देखे रवी... 23 Dec 2018 - 6:56 pm अनाम नक्षत्रातील तारा झळाळताना गगनी अनाहताच्या झंकाराची दुमदुम आली कानी इंद्रियगोचर विभिन्न अनुभव एकवटोनी गेले स्थूल सूक्ष्म जड चेतन यातील भेदही गळून पडले सुदूर बघता बघता अवचित क्षितिज बिंदूवत उरले अडले पाऊल कुंपण तोडून अनन्तयात्री झाले माझी कविताकविता प्रतिक्रिया सुरेख 24 Dec 2018 - 9:24 am | ज्ञानोबाचे पैजार आशयगर्भ कविता अतिशय आवडली. इतक सहज लिहीलय की वाटतय किती सोपे आहे सगळे, पैजारबुवा, जबरदस्त! 24 Dec 2018 - 12:19 pm | चांदणे संदीप क्लासिक! Sandy वा!! 24 Dec 2018 - 1:24 pm | यशोधरा वा!! पैजारबुवा, संदीप, यशोधरा 25 Dec 2018 - 7:43 pm | अनन्त्_यात्री धन्यवाद! अत्यंत उत्कृष्ट रचना !! 27 Dec 2018 - 7:47 pm | शार्दुल_हातोळकर अत्यंत उत्कृष्ट रचना !! शार्दुल_ 28 Dec 2018 - 1:10 pm | अनन्त्_यात्री धन्यवाद!
प्रतिक्रिया
24 Dec 2018 - 9:24 am | ज्ञानोबाचे पैजार
आशयगर्भ कविता अतिशय आवडली.
इतक सहज लिहीलय की वाटतय किती सोपे आहे सगळे,
पैजारबुवा,
24 Dec 2018 - 12:19 pm | चांदणे संदीप
क्लासिक!
Sandy
24 Dec 2018 - 1:24 pm | यशोधरा
वा!!
25 Dec 2018 - 7:43 pm | अनन्त्_यात्री
धन्यवाद!
27 Dec 2018 - 7:47 pm | शार्दुल_हातोळकर
अत्यंत उत्कृष्ट रचना !!
28 Dec 2018 - 1:10 pm | अनन्त्_यात्री
धन्यवाद!