अंगांगाची झाली लाही...
सैल नसू दे मिठी जराही!
मेघामाजी उनाड तडिता
तू सागर मी अवखळ सरिता
मला वाहू दे तुझ्या प्रवाही...
सैल नसू दे मिठी जराही!
पदरामधुनी लबाड वारा
घिरट्या घालत फिरे भरारा
गंध तनुचा दिशांत दाही...
सैल नसू दे मिठी जराही!
माझ्याशी तर वाद घालते
मला नाही,ते तुला सांगते
पायामधली पैंजण काही...
सैल नसू दे मिठी जराही!
रोम-रोम रोमांचित होवू
स्पर्शच केवळ स्पर्शच लेवू
अधरा दे अधरांची ग्वाही...
सैल नसू दे मिठी जराही!
चंद्रसरींनी चिंब भिजू दे
तुझे चांदणे मनी रूजू दे
धरेस दुसरे नकोच काही...
सैल नसू दे मिठी जराही!
—सत्यजित
प्रतिक्रिया
1 Feb 2018 - 5:47 am | प्रचेतस
क्या बात है..!
जबरदस्त
1 Feb 2018 - 7:48 am | प्राची अश्विनी
अप्रतिम!
1 Feb 2018 - 10:02 am | पैसा
वाहवा!
1 Feb 2018 - 11:18 am | वीणा३
एकदम मस्त !!!
जामच गोंधळ आहे, मिठी सैल असावी का नसावी कळेना झालाय :P दोन्ही मिठ्या छानच वाटतायत ;)
1 Feb 2018 - 11:38 am | दुर्गविहारी
मस्तच !!! अफलातून !!!
1 Feb 2018 - 10:44 pm | डॉ सुहास म्हात्रे
मस्तं !
2 Feb 2018 - 1:33 am | शेखरमोघे
सुन्दर!
3 Feb 2018 - 6:47 pm | सत्यजित...
सर्व प्रतिसादकांचे मनःपूर्वक धन्यवाद!
3 Feb 2018 - 10:04 pm | सस्नेह
काय सुरेख जुगलबंदी !
3 Feb 2018 - 11:14 pm | नाखु
ये. एक मिठीसी कविता है!!!
दै मिपा समाचार
वाचनीय रोमांचकारी जुगलबंदी
दै मिपासत्ता
5 Feb 2018 - 12:32 pm | राघव
सुंदर लिहिलेयस रे भावा! :-)
5 Feb 2018 - 9:26 pm | सत्यजित...
स्नेहांकिता,नाखु,राघव मनःपूर्वक धन्यवाद!
5 Feb 2018 - 10:55 pm | समाधान राऊत
वाह भाई वा