समस्त पंडित कवींचे आभार आणि क्षमा मागून पुढची ही वल्गुद-जिलेबी पाडली ऐसीजे . काही जिलेब्यांचे वरिजिनल मॉडेल मिपाकर नक्कीच वळखू शकतात. नसल्यास परत सांगतो शेवटी . तर या त्या जिलब्या:
असा येतां पाहे निजनिकट तो वल्गुद-हरि |
तदा जोकर् चित्तीं बहुत भरती मोदलहरी |
सुरीतें चाकूतें परजुनि वदे गद्गद रवें |
दिले शत्रू देवें मज सकल लोकांत बरवें ||१||
जिथे नाचती गुंड त्या जोकराचे | जनें होत पिल्लू जणूं कोकराचें |
स्व-कौशल्य ज्या कत्तलींतून नाना | दिसे त्या करोनी करीती तनाना ||२||
असे कर्णिका अंबुजामाजि जेवी | ठगांमध्यभागी बसे ली चि तेवी |
बसे एकला शांत जो चीनदेशी | तया बाहिरी काढणे हो अपेशी ||३||
तरी काढले बाहिरी लीलया हो | पुरी वाल्गुदी दाविली पैं तयां हो |
दिसामाजि ली आणिला गॉथमांते | तसा सोपवीला पहा गॉर्डनांते ||४||
तदितर ठग भेणे वेगळाले पळाले |
बहुत बहुत दंगा जे कराया मिळाले |
स्वठग गवसला जो याजपाशी नसे तो |
कठिण समय येता कोण कामास येतो ||५||
अद्यापि रेचल मनी बहु आठवीते |
संभाषणें निजमना रिझवीत जाते |
गेली परी हृदय नष्टवुनी सदाची |
कैसे जगू, रुचि मनातिल नष्ट साची ||६||
अशी संपली पूर्ण हो अष्ट वर्षें |
रणें माजती गॉथमीं हर्षमर्षें |
तरी वाल्गुदेया स्मरतात काही |
उसासे तरी काढती लोक काही ||७||
(क्रमशः).
प्रतिक्रिया
9 Sep 2012 - 1:13 am | पैसा
आता त्या क्रमशःमधे आम्हाला लटकत ठेवू नका!
9 Sep 2012 - 1:17 am | बॅटमॅन
धन्यवागदगळु ! आदरे ईसरे निश्चितवागि बेगने मुगिसतिने , तोंद्रे आगल्ला :)
9 Sep 2012 - 1:22 am | पैसा
चन्नागिदे. बेगा बरिबेक्का!
9 Sep 2012 - 8:40 am | प्रचेतस
माताय...!
इथे पण गळुच का?
9 Sep 2012 - 4:16 am | अरुण मनोहर
वल्गुदी मोहोळे टोचले बॅटमॅने
मिपारण्यी राही जरा सावधाने
9 Sep 2012 - 9:06 am | प्रचेतस
लै भारी रे वटवाघुळा
.
जरी जोकराला खंदिती वाल्गुदेय सहर्ष
परी अल घुलाचा ना घेतला परामर्श |
9 Sep 2012 - 11:50 pm | बॅटमॅन
खरे सत्य त्वां बोलिसी येथ वल्ली ;
मरे जोकरू , ना मरे वीषवल्ली;
पुढे येक देतोचि प्रीक्वेल साचे;
तिथे वर्णितो कांड त्या अल्-घुलाचे.
(छायाचमूचा शत्रू) बॅटमॅन.
10 Sep 2012 - 12:16 am | sagarpdy
भुजंगप्रयातस्य मातास्य ग्रामे!
9 Sep 2012 - 9:58 am | सूड
ननगे, इदु भाळ शेरत्तदं !
9 Sep 2012 - 11:10 am | sagarpdy
9 Sep 2012 - 3:04 pm | ज्ञानराम
जिलेबी खाऊन जिभेचे तुकडे पडले <<< :-p
9 Sep 2012 - 7:21 pm | पिंगू
जिल्बीची साइज काय आहे रे. तोंडात घुसतच नाही, तुकडे पाडून खातोय.. ;)
9 Sep 2012 - 11:05 pm | चित्रगुप्त
आवडले.
(जुन्या काव्यात वरती वृत्त कोणते ते लिहिलेले असायचे, तसे करता आल्यास बघा)
10 Sep 2012 - 12:17 am | अत्रुप्त आत्मा
10 Sep 2012 - 1:09 am | नंदन
वल्गुदभारत आवडले. पुढचा भाग बेगिना\बेगने\वेगाने (कोकणी\कन्नड\मराठी) येऊ द्या :)
10 Sep 2012 - 9:05 am | स्पंदना
हाय हाय!
हल्ली शरदिनी ताईंची गादी झटक्ल्यावर त्यातन पडल्या सारखी वाटते ही कवीता.
पण काही म्हण बॅटमन 'लय हुशार ' बग तू.
10 Sep 2012 - 7:12 pm | अत्रुप्त आत्मा
असा ब्याट-म्यानी लिहू लागला हो
चरित्रातुनी तो नवा भाग येवो...
किती कष्ट हो वाचका अंतरी ते
अता लवकरी नवा भाग तू दे.. ;)
10 Sep 2012 - 9:03 pm | ५० फक्त
लई झ्याक लिहिलंय रे.....
10 Sep 2012 - 10:48 pm | संपत
'इति वाल्गुदेय' कधी येणार? बाल कांड सुरवातीला यायला पाहिजे होते.. कि गतस्मृतींमध्ये येणार.. पण मजा आली.. पु.भा.शु.
11 Sep 2012 - 10:09 pm | मदनबाण
पार वल्गुदुन टाकले ! ;)
मला तरी यातले काही घंटा समजले नाही ! शिर्षासन करुन (मला तरी हे झेपणार नाही.;) ) वाचण्याचा प्रयत्न केल्यास बहुधा कळावे यातले काहीतरी असे वाटते. ;)
11 Sep 2012 - 10:44 pm | प्रचेतस
त्यानेही काही फरक पडणार नाही.
त्यासाठी वाचायला नाही तर वल्गुद त्रिधारा (बॅटमॅन ट्रिलोजी) बघायला लागेल. ;)
11 Sep 2012 - 10:47 pm | मदनबाण
अच्छा,असं हाय काय ! ;)
11 Sep 2012 - 10:49 pm | प्रचेतस
व्हय व्हय. :)
12 Sep 2012 - 1:44 pm | बॅटमॅन
वल्गुद त्रिधारा!!! आवडल्या गेले आहे :) जियो वल्ली!