काही कविता सुचलेल्या,
काही चक्क पाडलेल्या,
काही कविता छोट्या,
तर काही उगीच वाढलेल्या...
काही कविता भिजवणा-या
आषाढातल्या धारांसारख्या,
काही लागतात जीवाला,
वळवातल्या गारांसारख्या..
काही असतात सरळ सोप्प्या
होतात त्यांची गाणी,
हाती येत नाहीत काही;
अळवावरचं पाणी..
काही असतात साध्यासुध्या
स्पष्ट असतो अर्थ,
तर काही "ग्रेस"फुल्ल
नादी लागणं व्यर्थ...
काही असतात लाजाळू
त्यांची बनते वही,
काही इतक्या उतावीळ
'लाईकू'न घ्यायची घाई..
कशीही का असेना
कविता असते सई,
एकदा हात धरला की
साथ सोडत नाही..
प्रतिक्रिया
5 Mar 2017 - 8:54 pm | संदीप-लेले
पटलंच
5 Mar 2017 - 11:03 pm | वेल्लाभट
सुरेख
6 Mar 2017 - 12:26 am | अमिता राउत
आवडती...
6 Mar 2017 - 2:06 am | ज्ञान
छानच !!! पटलं
6 Mar 2017 - 10:45 am | अत्रुप्त आत्मा
येकच नंबर!
6 Mar 2017 - 1:22 pm | पुंबा
सुंदर..!!
हे भारीच.
6 Mar 2017 - 3:04 pm | मितान
ग्रेस फुल चा नाद नको पण सोडायला ;)
मस्त कविता !
6 Mar 2017 - 3:37 pm | पैसा
सुरेख!
10 Mar 2017 - 12:34 am | होकाका
खूप छaan!
10 Mar 2017 - 12:17 pm | प्राची अश्विनी
मग ही कविता कुठच्या प्रकारातील?;)
15 Mar 2017 - 1:14 pm | चुकलामाकला
सर्वाना धन्यवाद.
15 Mar 2017 - 1:29 pm | इशा१२३
छान कविता !
29 Mar 2017 - 11:23 am | चुकलामाकला
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