कविता हा अभिव्यक्तीचा सहजसोपा आणि तितकाच हवाहवासा आविष्कार. मला कविता आवडते. अगदी हायकू, चारोळी, छंदबद्ध आणि मुक्तछंद हे आणि असे सगळेच प्रकार आवडतात.
उर्दू शायरी हा असाच जिव्हाळ्याचा विषय. हायकू तीन ओळींचा, त्याहून कमी, म्हणजे दोनच ओळींमध्ये केवढं सांगता येतं, ते सिद्ध करणाऱ्या अशा असंख्य ओळी भेटत राहिल्या. नकळत मनात रेंगाळत राहिल्या. रचनाकार नाही माहिती, पण या ओळींचा उल्लेख आला की त्या शब्दप्रभूंना मनोमन सलाम केला जातो. अशाच काही ओळी देतेय... वाचकांनी भर घातली तर माझा हा आनंदाचा ठेवा आणखी वाढेल...
सजदे में आज भी झुकते है सर
बस, मौला बदल गया देखो...
जरूरत है मुझे कुछ नये नफरत करनेवालों की
पुराने वाले तो अब चाहने लगे है मुझे....
मेरे रोने की हकीकत जिस में थी
एक मुद्दत तक वो कागज नम रहा...
है परेशानियां युं तो बहुत सी जिंदगी में
तेरी मोहब्बत सा मगर कोई तंग नही करता....
वो कहानी थी चलती रही
मै किस्सा था, खत्म हुआं...
दिल से ज्यादा महफूज जगह नही दुनियां मे
पर सबसे ज्यादा लापता भी लोग यही से होते है...
ऐ इश्क, जन्नत नसीब न होगी तुझे
बडे मासूम लोगो को तूने बरबाद किया है....
शौक थे अपने- अपने
किसी ने इश्क किया... कोई जिंदा रहा...
दीदार की तलब हो तो नजरे जमाएं रखना
क्योंकी नकाब हो या नसीब
सरकता जरूर है...
छीन लेता है हर अजीज चीज मुझसे ऐ किस्मत के देवता,
क्या तू भी गरीब है...
हवाएं हडताल पर है शायद
आज तुम्हारी खुशबू नही आयी...
डुबे हुओ को हमने बिठाया था अपनी कश्ती में यारो...
और फिर कश्ती का बोझ कह कर हमे ही उतारा गया...
कोई तो है मेरे अंदर मुझे सम्भाले हुए...
जो इतना बेकरार होते हुए भी बरकरार हूं...
जुबाँ न भी बोले तो मुश्किल नही
फिक्र तब होती है जब खामोशी भी बोलना छोड दे...
वो भी आधी रात को निकलता है और मै भी ...
फिर क्यो उसे चाँद और मुझे आवारा कहते है लोग...
फिक्र तो उसकी आज भी करते है,
बस जिक्र करने का हक नही...
काश के वो लौट आए मुझसे ये कहने
की तुम कौन होते हो मुझसे बिछडनेवाले...
मेरे शब्दो को इतनी दिलचस्पी से ना पढा करो
कुछ याद रह गया तो हमे भूल नही पाओगे...
प्रतिक्रिया
31 Oct 2015 - 7:19 am | भुमी
प्रतिसाद देखील सुंदर
31 Oct 2015 - 8:41 am | एस
तू कहाँ का दाना था,
किस हुनर में यकताँ था।
बेसबब हुआ ग़ालिब दुश्मन आसमाँ अपना॥
(यकताँ = एखाद्या विषयातील प्रकांडपंडित वगैरे)
31 Oct 2015 - 10:30 am | मधुमति
मुमकिन है सफ़र हो आसाँ अब साथ भी चलकर देखे,
कुछ तुम भी बदलकर देखो कुछ हम भी बदलकर देखे
मुझसे नफरत ही करनी है तो इरादे मजबूत रखना,
जरा सा भी चूके तो मोहब्बत हो जायेगी………!!
पूछा था हाल उन्हॊने बड़ी मुद्दतों के बाद...
कुछ गिर गया है आँख में...कहकर हम रो पड़े.
5 Nov 2015 - 7:55 am | मधुमति
रौनके कहाँ दिखाई देती है अब पहले जैसी..
अखबारों के इश्तेहार बताते हैं.. कोई त्योहार आया है..!!
थोड़ी-थोड़ी सर्द हवा और थोड़ा दर्द-ए-दिल..
अंदाज बहुत अच्छा है नवम्बर तेरे आने का..!!
सुबह उठते ही तेरे जिस्म की खुशबु आई,
शायद रात भर तूने मुझे खवाब मे देखा है…
25 Feb 2016 - 2:30 pm | माधुरी विनायक
वो भी शायद रो पडे विरान कागज देखकर,
मैने उनको आखरी खत में लिखा कुछ भी नही...
आज महफील शांत कैसे है दोस्तों,
जख्म भर गये या मोहोब्बत फिर से मिल गयी..
नींद आए या ना आए, चिराग बुझा दिया करो,
यूँ रात भर किसी का जलना, हमसे देखा नहीं जाता....!!!
तेरे शहर के कारीगर बङे अजीब हैं ए दिल,
काँच की मरम्मत करते हैं पत्थर के औजारों से …!
आवाज़ का लहज़ा इक पल में बता देता है
क़ी रिश्ता कितना गहरा है
दौड़ने दो खुले मैदानों में नन्हे क़दमों को ...
ज़िन्दगी बहुत भगाती है,बचपन गुज़रने के बाद !!
मौसम बहुत सर्द है ऐ-दिल !
चलो कुछ ख्वाहिशों को आग लगाते हैं...
25 Feb 2016 - 5:51 pm | जयेशसर
पाण्यात वाहणारे, सुकलेले पान मी,
उडताहि येत नाही, बुडताही येत नाही...
25 Feb 2016 - 5:54 pm | जयेशसर
गंध आल्यावर कळतना, जाईचं फुल फुलतयं,
तस तिला अलगद काळावं,तिच्यासाठी कुणीतरी झुरतय....
14 Feb 2017 - 7:05 pm | शब्दबम्बाळ
हम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका
मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया
--जिगर मुरादाबादी
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
बुत-ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइए
दिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है
-- हैदर अली आतिश
20 Jun 2020 - 8:18 pm | विजुभाऊ
इतका सुंदर धागा वाचलाच नव्हता कधी
25 Jun 2020 - 9:24 am | रागो
कहीं पर दुआ का एक लफ़्ज भी असर कर जाता हैं
तो कहीं बरसों की इबादत भी हार जाती हैं
25 Jun 2020 - 9:26 am | रागो
फ़िक्र सबकी करो तो अच्छा है
दिल में ज़िंदा रहो तो अच्छा है
मौत बन कर खड़ा है कोरोना
अपने घर में रहो तो अच्छा है
फ़र्ज़ अपना निभा के चलना है
और सब को बचा के चलना है
फिर मिलेंगे मिलेगा जब मौक़ा
आज दूरी बना के चलना है
26 Jun 2020 - 5:08 pm | सिरुसेरि
सध्या चालु असलेल्या चीन वादामुळे , जुन्या आँखे चित्रपटातील ( धर्मेद्र , धुमाळ ) या ओळी आठवल्या .
"उस मुल्क की सरहद को कोई छु नही सकता , जिस मुल्क की सरहद की निगेहबान है आँखे" .