ओंजळीत या रित्या कुणी सुगंध पेरले
मनास गंध स्पर्शता, शब्द शब्द जाहले ..
भरून अंतरात या कुठून येइ चांदवा
अचूक हेरल्या कुणी खुळ्या अबोल जाणिवा
कुठून रंग पेरती मनी अगम्य कुंचले
रहायचे मनात जे दडून आर्त काहिसे
समूर्त आज जाहले भाव ते खुळे पिसे
मनातले तरंग हे कुणी अचूक झेलले
कशास जीव जाळतो भास पूर्णतः नवा
अनोळखी, तरी कसा स्पर्श वाटतो हवा?
ना कळे कधी कसे जिवात जीव गुंतले...
© अदिती जोशी
प्रतिक्रिया
17 Jan 2014 - 7:33 pm | यशोधरा
वा! सुरेख!
17 Jan 2014 - 7:38 pm | अत्रुप्त आत्मा
व्वाहव्वा..क्या बात है!
17 Jan 2014 - 8:46 pm | इन्दुसुता
वा! छानच आहे कविता
17 Jan 2014 - 10:41 pm | आनंदमयी
खूप खूप धन्यवाद
18 Jan 2014 - 11:20 am | psajid
आवडली कविता
18 Jan 2014 - 3:45 pm | आनंदमयी
धन्यवाद...
18 Jan 2014 - 6:37 pm | प्यारे१
आवडली कविता!
19 Jan 2014 - 8:52 am | आनंदमयी
धन्यवाद
19 Jan 2014 - 1:10 pm | विवेकपटाईत
मस्त कविता
19 Jan 2014 - 1:53 pm | निवेदिता-ताई
छानच..... :)
19 Jan 2014 - 8:24 pm | आनंदमयी
:) धन्यवाद...!!