तू म्हणतेस कवितेतल, तुला काही कळत नाही
पण म्हणून काही तुझ, कविता होण टळत नाही
हलकी हसतेस नजरेतून, अदा जीव घेवून जाते
मतल्यासह एक सुंदर, गझल सहज होवून जाते
ही बेहोशी सखे, कुठल्या मैफीलीत मिळत नाही,
अन म्हणून काही तुझ, कविता होण टळत नाही..
मुक्तछंदात बोलताना, गुंफून घेतेस सहज आर्या ,
तुझ्या मात्रा मोजताना, गाते अभंग माझी चर्या,
काय लघु, काय गुरु, हिशोब काही जुळत नाही,
पण म्हणून काही तुझ, कविता होण टळत नाही..
कविता म्हणजे काय ग, शहाण्यासारख वागायचं,
थोडं जगात सांगायचं , अन बराच मनात भोगायचं,
आपली कविताही कधी, आपल्यालाच कळत नाही,
पण म्हणून काही आपल, कविता होण टळत नाही..
- शैलेंद्र
प्रतिक्रिया
24 Dec 2015 - 10:04 am | प्रचेतस
सुरेख.
खूप दिवसांनी आलास रे.
24 Dec 2015 - 10:22 am | शैलेन्द्र
धन्यवाद,
अरे mac वर टाईप नाही करता येत मराठी
(हा जाहिरातीचा प्रयत्न नव्हे ;) )
24 Dec 2015 - 10:12 am | DEADPOOL
छान!
24 Dec 2015 - 11:21 am | किसन शिंदे
बर्याच दिवसांनी दिसलास मित्रा. कविता आवडली.
24 Dec 2015 - 11:26 am | शैलेन्द्र
वाचनमात्र होतो, आभार
24 Dec 2015 - 11:49 am | अभ्या..
अहाहा.
ह्याला म्हणायचे काव्य.
अप्रतिम शैलेन्द्रा
24 Dec 2015 - 7:20 pm | पद्मावति
सुरेख कविता.
24 Dec 2015 - 7:24 pm | स्पा
क्या बात शेलेन्द्र भाई
मजा आली
24 Dec 2015 - 8:12 pm | एक एकटा एकटाच
मस्त मस्त मस्त
25 Dec 2015 - 1:29 pm | मनीषा
सुंदर कविता !
26 Dec 2015 - 10:05 am | शैलेन्द्र
धन्यवाद, डेडपूल, एकटा, स्पा, मनीषा, पद्मावती, अभ्या
1 Jan 2016 - 10:19 am | राघव
आपली कविताही कधी, आपल्यालाच कळत नाही,
सुंदर. :-)
1 Jan 2016 - 11:39 am | यशोधरा
सुरेख.
1 Jan 2016 - 12:02 pm | डॉ सुहास म्हात्रे
सुंदर !
1 Jan 2016 - 12:41 pm | सस्नेह
हीच हीच कविता !
1 Jan 2016 - 1:20 pm | पैसा
खूप छान लिहिलंस!
1 Jan 2016 - 2:06 pm | नाखु
एक तो विशाल्या आणि दुसरा तू....
हाडाचे कवी ( नाहीतर आम्च्या कवीतांनाच हाड हाड म्हणतात)
प्रतिसाद मात्र नाखु
1 Jan 2016 - 3:47 pm | प्राची अश्विनी
अतिशय सुंदर कविता!
3 Jan 2016 - 8:17 am | स्वप्नज
पण म्हणून काही तुझ, कविता होण टळत नाही...
फारच सुरेख. अप्रतिम काव्य.
3 Jan 2016 - 9:11 am | सौन्दर्य
कविता फार आवडली. मोजक्या शब्दात खूप सांगून गेली. मस्तच.
3 Jan 2016 - 5:12 pm | शैलेन्द्र
खूप खूप धन्यवाद सगळ्यांचे
4 Jan 2016 - 3:52 pm | विशाल कुलकर्णी
सुरेख...
11 Jan 2016 - 10:31 am | शैलेन्द्र
धन्यवाद विशाल
12 Jan 2016 - 8:46 pm | प्रा.डॉ.दिलीप बिरुटे
आवडलीय कविता. शेवटच्या चार ओळी तर खासच.
-दिलीप बिरुटे
16 Jan 2016 - 8:19 pm | शैलेन्द्र
17 Jan 2016 - 10:05 pm | शैलेन्द्र
तुम्ही दाद दिलीय असं समजूनच मी प्रवास चालू ठेवतो सर :) :)
17 Jan 2016 - 10:34 am | मयुरMK
17 Jan 2016 - 10:34 am | मयुरMK
17 Jan 2016 - 8:30 pm | अभिजीत अवलिया
मस्त कविता कविराज ...