मेघांस कांही रुपेरी किनारी
तळी त्याच काळ्या कपारी कपारी
जणू कातळाचे भले अंग ओले
तया जोजवी भास्कराची सवारी
तमा ना जगाची भरे रोज मेळा
सावळ्या कतारी सकाळी सकाळी
क्षितीजी पहाट झुंजु मुंजू हिवाळी
सरी पावसाच्या आता,….
दूरच्या आभाळी …….
……………… अज्ञात
प्रतिक्रिया
12 Nov 2013 - 10:09 am | स्पंदना
मस्त!
अगदी अज्ञात्कुल स्टायल.
12 Nov 2013 - 10:17 am | अज्ञातकुल
:)