ठेच लागता घाई घाई,
तोंडी नेमके आई आई ..
दु:खामधे मुखात येई
कसे नेमके आई आई ..
तळमळ जेव्हां जिवात होई
मनीं नेमके आई आई ..
समर प्रसंग सामोरी येई
स्मरण नेमके आई आई ..
बापाचा पाठी मार खाई
तोंडी नेमके आई आई ..
जन्म माणसा वाया जाई
म्हटले ना जर आई आई !
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प्रतिक्रिया
31 Jan 2013 - 10:38 pm | आनन्दिता
आय आय गो भारी जमलिय कविता.. चाल लावुन पण म्हणता येऊ शकेल...
31 Jan 2013 - 10:40 pm | अत्रुप्त आत्मा
अतिश्शय छान.......!
31 Jan 2013 - 10:45 pm | श्रिया
खुप छान आहे कविता!
1 Feb 2013 - 9:47 am | मिसळलेला काव्यप्रेमी
खुप आवडली.
1 Feb 2013 - 10:44 am | हासिनी
साधी, सोपी कविता मस्तच!
:)