मै पिच्चर में जावू के नको

पाषाणभेद's picture
पाषाणभेद in जे न देखे रवी...
27 Sep 2011 - 4:45 am

मै पिच्चर में जावू के नको

ये करू नको, वो करू नको सदा ऐसेच बोलतेय आप तो
मै पिच्चर में जावू के नको ये अब्बीच बोल दो मेरे को ||धृ||

देखने में मै हूं बडी देखनी; सब बोलतेय मेरकू चिकनी
नही कोई मुझमे कमी; मेरे बगैर पडती गली सूनी
कैसी हिरोईन एक नंबर बनती तुम अभी देखो
मै पिच्चर में जावू के नको ये अब्बीच बोल दो मेरेको ||१||

मुंबई शहर है बडा मोटा; नाही पैसेका उधर तोटा
मत करो मेरेको बेटा बेटा; नाही होंगा अपनेको घाटा
अब्बी मेरी अम्मीभी राजी हो गयी देखो
मै पिच्चर में जावू के नको ये अब्बीच बोल दो मेरेको ||२||

तुम खाली हातमाग चालवतय; रातदिन मेहनत मजूरी करतय
हातपाय फुकटमधी चालवतय; बुढा होनेपर कोन तेरेकू देखतय?
अब्बा तूम भी मान जाव मालेगांव छोडनेको
मै पिच्चर में जावू के नको ये अब्बीच बोल दो मेरेको ||३||

- पाषाणभेद (दगडफोड्या)
२७/०९/२०११

कविता

प्रतिक्रिया

चित्रा's picture

27 Sep 2011 - 8:09 am | चित्रा

ये लिखू नको, वो लिखू नको सदा ऐसेच बोलतेय आप तो
मै मिपा पे जावू के नको ये अब्बीच बोल दो मेरे को ||धृ||

लिखने की मैने है ठानी; सब देतेय मेरकू परेशानी
नही कोई मुझमे कमी; लिखती जबी तो पडती है गली सूनी
कैसी लेखिका एक नंबर बनती तुम अभी देखो
मै मिपा पे जावू के नको ये अब्बीच बोल दो मेरेको ||१||

हे असले काही वाचायचे नसले तर अशा कविता लिहायच्या आधी विचार करा - आधीच सांगून ठेवते. मग एकदा का आमची लेखणी सुरु झाली की मग बोलून काही उपयोग नाही व्हायचा.. ;)