प्लॅन्चेट

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उदय सप्रे in जे न देखे रवी...
18 Apr 2008 - 1:52 pm

कुछ निवेदन :
यह कविता हिंदोस्ताँ के हर उस शख्स को मैं समर्पित करता हूं जिसके दिलमें इस देश के लिए बेतहाशा इज्जत है , की यह देश दुनिया का एक ही देश है , जिसने इस देशपर आक्रमण करनेवाले हर देश के नागरीक को यहाँ पनाह दी है !
यह कविता मैं हिंदोस्ताँ के मशहूर वैज्ञानिक श्री.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम और भूतपूर्व प्रधानमंत्री आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी को समर्पित करता हूं !
और्.....यह कविता हर उस शख्स को समर्पित है जिस की रूह में अब तक शहीदों की कुर्बानी जिंदा है ! जिस को आजादी की कीमत पता है और जो किसी भी जाती या धर्म का नहीं बल्की इन्सानियत का बंदा है !
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प्लॅन्चेट

एक दिन मेरे दिल में यह खयाल आया ,
की क्यूं न मैं किसी शहीद की रूह से बातें करूं?
पर तब यह भी अह्सास हुवा की मुझे प्लॅन्चेट नहीं आती !
फिर भी मैंने श्रध्दा से एक कटोरा उलटा रखा
दिल ही दिल में भगतसिंह का ध्यान किया
फिर एक अगरबत्ती जलाई और एक दीप जलाया

तब्.....उस कमरेमें सिर्फ अंधेरा था
सिवा एक दिये के रौशनी का न बसेरा था
कुछ पल बाद ही मुझे बुलंद सी आवाज आई,
"बोल मेरे आजाद देश के प्यारे भाई !
क्या चाहता है तू अब इस कंगाल रूह से,
जिसने अपना तन मन धन यहाँ बिखेरा था?!"

मैंने कहा, "भगत प्रा जी , आप कहाँ हो?"
तब फिर वह आवाज दर्द भरी आई,
"कहाँ हूं? ऐ दोस्त, ऐ भाई, १६ अगस्त १९४७ से
आज तक्.....मैं हर उस जगह पे हूं
जहाँ हमनें खून बहाया है
काश की तु देख सकता ,
आज देश की हालत देख
हर शहीद अपनेही आँसूं नहाया है !

जिस नारी के सभ्यता शिष्टाचार को देख
ऐना कोर्निकौवा भी सारी पहने,
उसी नारी को क्लबों में नचाकर
ऐय्याशी करनेवालों, तुम्हारी क्या कहनें?

वीर सावरकर की तसवीर कहाँ लगाएं
इस पर बहस करता है एक पढा लिखा मंत्री
जिनकी मौत पर .....कईं अंग्रैज भी भूखें रहे
और खडी ताजीम देनेवाले थे कई संत्री !

छूत अछूत की दुनिया से परें
पूरे देश में चर्चा का कोई विषय नहीं
अमरीका चिंतीत है के कहीं हिंदोस्ताँ आगे न निकल पाएं
पर "अमरीका से आगे प्रगती" यह यहाँ आशय नहीं !

मूंग के लड्डू , मकई की रोटी
सरसों का साग अब ऐन्टीक है,
कोक , फ्रैन्च फ्राईज् और पिज्जा
आज की नस्ल के लिए "फॅन्टास्टीक" है !

एक वैज्ञानिक होनेके बावजूद
परदेस की आंस नहीं रखता "कलाम"
और सिर्फ MBA-MS करनेसे
बन रहे हैं DOLLARS-EURO के करोंडों गुलाम !

पर अब दोष भी नहीं दिया जाता किसी को
के हर कोई सभ्य नागरीक वंचित है एक हँसी को
लुटेरोंके रूपमें बैठें है कई सांड CABINET में
अब डरता नहीं कोई चोरोंसे, मरता है पर "पुलीस" की फँसी को ! "

कुछ देर तक सन्नाटा छाया रहा,
मैं अपनेही आँसूं पलकोंमें बिछाया रहा
और फिर वो "आहट" भी धुंदली हुई
मैं कटोरे में "पानी" को पाया रहा !

उस "पानी" को तीरथ समझकर
मैंने आँखोंसे हाथ फेरा
फिर अपने हथेली पे कुछ बूंदे लें मूह में लीं
जायका "नमकीन" हो उठा मेरा !

तब मैंने ठान ली की ,"हे भगवान,
अब मैं कभी प्लॅन्चेट नहीं करूंगा
किसी शहीद की रूह को बुलाकर
उसकी आँखोंमें पानी नहीं भरूंगा !

की अचानक्.....फिर से वही आवाज आई,
"रो मत मेरे प्यारे भाई,
तू समझता है तेरे प्लॅन्चेट से हम आअँ हैं?
अरे इन हजारों करोंडों लाशोंमें एक तो "जिंदा" रूह हो
इसलिए हम शहीद ही प्लॅन्हेट कर रहे थे.....
के तूने अपनी हस्ती दिखाई !

तेरे कलम में वो ताकत है
जो अब भी कुछ कर सकती है
दुख सिर्फ इस बात का है की वो
चंद रुपयोंमें अखबार में बिकती है !

तू समझता है इस कटोरेमें
जो आँसूं है , वो सिर्फ मेरे है?
भाई मेरे, MEDIA ने तब भी
PARTIALITY की और चँद नाम ही बताएं
किसीको "राष्ट्रपिता", किसीको "चाचा" बनाया
पर कईं नाम आज तक रहें जताएं
तू बस् इतना जान ले, जलियनवाला बाग पताहै?
ऐसे कई लोग मरें-तेरे भाई हैं !

आज कश्मिर में आतंकवादियोंके हाथों
कई जवाँ मरते हैं जाँबाज सिपाही बनकर
अखबार में मगर हररोज छपता है
संजय दत्त और सलमान खान सियाही बनकर ! "

तभी मैंने पूंछा उस आवाज से,
"भगत जी , आप कहते हो ये आँसूं
हजारों लाखों शहीदोंके है ..पर्
फिर ये कटोर भर के बह क्यूं नहीं गया?"

कुछ विषण्णता से वह आवाज बोली,
"बेटा, पिछली साँठ साल से* रो रहें हैं.....* (१९४७ से)
कौन जाने, किसकी आँखे सूखीं हैं ?
और किसकी आँखोंके आँसूं कटोरे में रह गएं !

पर हम इतना जरूर जानतें हैं बेटा,
ये उम्मीद है के अब फिर इन्किलाब आएगा
सोएं हुवे शेर जागेंगे , पूरे देश में "कलम" और "कलाम" होगा
देश का भविष्य "अटल" होगा, जब ये सैलाब आएगा !

-----------उदय गंगाधर सप्रे-थाने-२६-मई-२००७-समय्-संध्या : ०६.३- से ०७.३०

कविता

प्रतिक्रिया

विसोबा खेचर's picture

18 Apr 2008 - 2:59 pm | विसोबा खेचर

हिंदी भाषेबद्दल आम्हालाही प्रेम आणि आदर आहे परंतु मिसळपाव हे मराठी संकेतस्थळ आहे याची जाणीव असू द्यावी...! ;)

तात्या.

उदय सप्रे's picture

18 Apr 2008 - 3:22 pm | उदय सप्रे

तात्या साहेब,

माफी असावी !
काढून टाकता येईल का? तर माझी विनंती आहे - काढून टाका !

विसोबा खेचर's picture

18 Apr 2008 - 5:16 pm | विसोबा खेचर

काढून टाकता येईल का? तर माझी विनंती आहे - काढून टाका !

काढून टाकण्याची गरज नाही, परंतु पुढच्या वेळेपासून हे मराठी संस्थळ आहे ही जाणीव असू द्यावी एवढेच आमचे विनंतीवजा सांगणे..!

असो, आमचा मुद्दा समजून घ्यावा व राग मानू नये...

आपला,
तात्या.

उदय सप्रे's picture

19 Apr 2008 - 8:48 am | उदय सप्रे

तात्या,
मराठी माणसासाठी कळकळीने काम करणार्‍या तुमच्यासारख्या माणसावर ठरवून पण राअगावता येणे अशक्य आहे ! मला राग आला नव्हताच उलट माझी चूक लक्षात आली (उशिराने !).....