अख्ख्या दिवसभरात तिची आवडती वेळ दिवेलागनीची. कातरवेळ. कधी रिकाम्या हाताने न येणारी. कधी कटू कधी गोड आठवणी सोबत आणणारी. कधी खूप त्रागा व्हायचा पण तरीही वाट पहायची रोजच. मैत्रीणच वाटायची तिला.
आजसुद्धा न चुकता आलीच संध्याकाळ. तशी हुरहूर होतीच आधीपासून. पण आज तिनं निर्धार केला,नाही सोडवत बसायचं कुठलाच गुंता. तिन्हीसांजेला सांगितलं, बाई आलीस तशी चार घटका बस पण आज काही तुझा पाहुणचार करायला मला वेळ नाही.
सांज म्हणाली.. "नवी मैत्रीण मिळाली वाटतं?"
"नाही आज तो येणार आहे भेटायला."
तशी खुदकन हसून म्हणते कशी, "जोडीन येतायत देवीच्या दर्शनाला?"
मनात पेटलेले उरलेसुरले दिवे मालवुन मग ती वाट पहात बसली कातरवेळ विझन्याची.
प्रतिक्रिया
5 Aug 2015 - 11:15 pm | दमामि
hहे आठवले.
5 Aug 2015 - 11:48 pm | रातराणी
ओह हे निसटले होते वाचायचे. मस्त आहे.
5 Aug 2015 - 11:19 pm | प्यारे१
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5 Aug 2015 - 11:22 pm | रेवती
+१.
6 Aug 2015 - 5:57 am | आगाऊ म्हादया......
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6 Aug 2015 - 8:46 am | प्रीत-मोहर
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6 Aug 2015 - 11:06 am | जडभरत
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6 Aug 2015 - 11:12 am | सिध्दार्थ
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6 Aug 2015 - 4:11 pm | सानिकास्वप्निल
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6 Aug 2015 - 4:13 pm | मुक्त विहारि
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6 Aug 2015 - 4:19 pm | नाखु
सखोल अर्थ आणि आर्त
6 Aug 2015 - 7:09 pm | प्राची अश्विनी
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7 Aug 2015 - 5:25 pm | gogglya
कळली. कोणी खुलासा करुन सांगेल का ?
7 Aug 2015 - 8:31 pm | बहिरुपी
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7 Aug 2015 - 9:07 pm | अत्रुप्त आत्मा
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8 Aug 2015 - 11:38 am | पैसा
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8 Aug 2015 - 11:42 am | प्रदीप@१२३
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8 Aug 2015 - 11:53 am | सदस्यनाम
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मस्त एकदम
8 Aug 2015 - 12:30 pm | अजया
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8 Aug 2015 - 6:01 pm | एक एकटा एकटाच
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9 Aug 2015 - 11:00 am | तीरूपुत्र
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