गूढ जांभळ्या कोन्यात
क्लांत आदिम श्वापद
माझ्या मातीच्या पायांची
लाल, रांगडीशी याद
कधी शुभ्र झळाळतो
एक कोना आरस्पानी
अद्भुताची निळी हाक
मग गुंजतसे कानी
कुतूहलास पारव्या
केशरीशी ज्ञानफळे
हिर्वळीस सर्जनाच्या
किल्मिषांचे खत काळे
कल्लोळती रंगरेषा
अशा रात्रंदिन मनी
इंद्रधनूची कमान
शोधू कशाला गगनी
प्रतिक्रिया
7 Mar 2018 - 6:24 pm | पद्मावति
केवळ क्लास्स!!
कल्लोळती रंगरेषा हा शब्दही खुप आवडला.
8 Mar 2018 - 8:23 am | प्रचेतस
+१
8 Mar 2018 - 2:30 am | सत्यजित...
ही रंगपंचमी-विशेष आवडली!
>>>इंद्रधनूची कमान
शोधू कशाला गगनी>>>आपण चितारलेल्या अक्षरचित्रांतील गूढ रंगसंगती कितीतरी मोहक आहे!
8 Mar 2018 - 9:18 am | ज्ञानोबाचे पैजार
सुरेखच
फार म्हणजे फारच आवडली
पैजारबुवा,
8 Mar 2018 - 9:02 pm | अनन्त्_यात्री
मनःपूर्वक धन्यवाद.
10 Mar 2018 - 8:29 am | प्राची अश्विनी
सुरेख!
10 Mar 2018 - 7:21 pm | अनन्त्_यात्री
धन्यवाद.
10 Mar 2018 - 7:42 pm | पैसा
मस्त कविता!
11 Mar 2018 - 11:49 am | अनन्त्_यात्री
धन्यवाद!
12 Mar 2018 - 7:21 pm | खिलजि
अनंत यात्रींसाहेब ,, आपल्या बऱ्याच कविता खरंच खूप सुंदर असतात .. मी आज कविता वाचली आणि परत या सांजवेळी धुळवड अनुभवली .. तीही निसर्गाची ... छान अप्रतिम कल्पना ...
सिद्धेश्वर
13 Mar 2018 - 2:20 pm | अनन्त्_यात्री
धन्यवाद.