< < < < मजबूरी हय > > > >
मिकादा, पैजारबुवा, अभ्यादादा आऊर रातराणीतै के पिच्चे पिच्चे मै भी कस्काय चल पड्या कायच म्हैती नाही. पन मेरा भी जळके करपा मस्सालाभात हुवा इस्लीये मयनेभी हिन्दिक्की चिंदी करनेका ठाणच डाल्या. मंग काय...एक आय अपने पोरट्याको कयसे धोपातटी हय वैच्च चित्र कविता मे उतारके इद्दर डालरा हू! तेवढेमे भाशेका ट्याण्डर्ड भी लै खालीच आया उस्के लिए मापी, लेकीन ये भाशा आपुनका बच्चपनका दोस्त मुलाणी मेरेको शिकायेला हय, जो उस्के आऊर मेरे वास्ते जान से प्यारी हय.
ठयरे हुए पानी मे
किसी येडेने डालेले फत्तरकी माफिक
होता है रे बाबा तेरा मारना!!