कांगारूंचा संघ | मस्तीत तो दंग|
भलतेच रंग | उधळीसे ||
भारताचा संघ | होतातरी दंग |
खेळण्यात भंग | रिकी करे||
अँड्र्यूचे मर्कट | लढवी तर्कट |
त्यालाही सपोर्ट | रिकी चा ह्या||
भज्जी तोही चिडे | काढता वाभाडे |
तरीही तो नडे | रिकी बाळ ||
नसते आरोप | करती ते खूप ||
दिला मग चोप | खेळामाजी ||
वामन सचिन | करतो हैराण |
घरचे मैदान | कुठे जाशी?||
एकदिस क्रिकेट | कांगारु ते धीट |
बोले फटाफट | संपवूया ||
धोणीनेही मग | बांधला तो चंग |
पाजली ती भांग | कांगारुंना ||
दोन्ही सामन्यात | लाविली ती वाट |
रहावे चड्डीत | कांगारूंनी ||
पुरे तरी आता | बाष्कळह्या बाता |
म्हणे बोध देता| 'चतुरंगे'||
प्रतिक्रिया
5 Mar 2008 - 12:24 am | अनिकेत
सुंदर..
अगदी मनातले बोललात...
अनिकेत
5 Mar 2008 - 12:24 am | अनिकेत
रहावे चड्डीत | कांगारूंनी ||
हा हा हा
5 Mar 2008 - 12:31 am | सर्किट (not verified)
मस्त !!
- सर्किट
5 Mar 2008 - 12:58 am | नंदन
साहेबांवाचुनि सापडेना सोय, धरावेत पाय...
पाँटग्या, शिंच्या सूर दे...झोपलास काय :)
नंदनमराठी साहित्यविषयक अनुदिनी
5 Mar 2008 - 2:38 am | llपुण्याचे पेशवेll
'दोन्ही सामन्यात | लाविली ती वाट |
रहावे चड्डीत | कांगारूंनी |'
हे बाकी मस्त. बरेच दिवसानी चड्डीत रहा शब्दप्रयोग ऐकला.
पुण्याचे पेशवे
5 Mar 2008 - 11:52 pm | केशवसुमार
'दोन्ही सामन्यात | लाविली ती वाट |
रहावे चड्डीत | कांगारूंनी |'
हे बाकी मस्त.
बरेच दिवसानी चड्डीत रहा शब्दप्रयोग ऐकला.
चालू द्या..
(लुग्गीवाला)केशवसुमार
5 Mar 2008 - 9:13 am | विसोबा खेचर
ओव्या आवडल्या....:)
रंगा, तुझ्या प्रतिभेला आपला सलाम रे....!
तात्या.
5 Mar 2008 - 2:21 pm | सहज
हेच म्हणतो.
5 Mar 2008 - 9:17 am | प्राजु
चतुरंग,
मानलं तुम्हाला.... अप्रतिम. एकदमच सह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हि................
- (सर्वव्यापी)प्राजु
5 Mar 2008 - 10:07 am | आनंदयात्री
भारीच ...
वामन सचिन | करतो हैराण |
घरचे मैदान | कुठे जाशी?||
मस्त !!
5 Mar 2008 - 5:31 pm | चतुरंग
चतुरंग
5 Mar 2008 - 5:49 pm | प्रा.डॉ.दिलीप बिरुटे
दोन्ही सामन्यात | लाविली ती वाट |रहावे चड्डीत | कांगारूंनी ||
लै भारी, सारेच अभंग जब्रा हायेत, असेच लिव्हित राव्हा :)
5 Mar 2008 - 8:15 pm | सुधीर कांदळकर
अँड्र्यूचे मर्कट | लढवी तर्कट |
त्यालाही सपोर्ट | रिकी चा ह्या||
या ओळीत आपण वांशिक टीका केलीत. आता कांगारू काय म्हणेल?
गेला जगातील सर्वात मोठ्या विभागात, ज्यात सर्व त्याज्य वस्तु आपण पाठवतो.
पण चड्ड्या आपणच पुरवाव्या लागतील. सगळ्या धोनी आणि मंडळींनी काढून घेतल्या. माझे चार आणे जाहीर.
संत चतुरंग जी , मज्जा आली. अशाच प्रसंगानुरूप शानदार जानदार ओव्या येऊ द्यात.
आचरटाचार्य.
5 Mar 2008 - 9:43 pm | धनंजय
आणि शिघ्र काव्य
5 Mar 2008 - 10:49 pm | ऋषिकेश
आजच मिपावर २-३ दिवसंनी आलो आणि ही कविता वाच्ली.. सुंदर!!! आवडली :)
-('मिसळ'लेला) ऋषिकेश
5 Mar 2008 - 11:18 pm | स्वाती राजेश
मस्त काव्य रचले आहे.
5 Mar 2008 - 11:53 pm | वरदा
मी तर चड्डीत रहाणे पहिल्यांदाच ऐकलं...मस्तच आहेत ओव्या....
6 Mar 2008 - 1:05 am | सुवर्णमयी
मस्त! भारताने मॅच जिंकली हे मला जरा उशीराच कळाले:)
छान चालू द्या.
12 Mar 2008 - 12:11 am | सचिन
भाषान्तर करून "डाउन अण्डर " पाठवून द्या !!
पॉण्टिङ्गच्या ऑस्सी की तैसी !!
12 Mar 2008 - 12:12 am | सचिन
भाषान्तर करून "डाउन अण्डर " पाठवून द्या !!
पॉण्टिङ्गच्या ऑस्सी की तैसी !!