श्वासांतून वाहे
सावळा मुरारी..
पायी चाले वारी
पंढरीची||
सावळ्या डोहात
सावळा तरंग
भक्तिरूपी दंग
वारकरी||
बंधने जुनी का
भासती विजोड
देहा लागे ओढ
विठ्ठलाची..||
अधिरश्या जिवा
पावलांची साथ
वसे अंतरात
भक्तियोग ||
पाहता लोचनी
विठ्ठल सावळा
तप्त जीव भोळा
श्रांत होई ||
विष्णुरूपी लीन
होवून मरावे
अंतास उरावे
विष्णूरूप ||
अदिती जोशी
प्रतिक्रिया
5 Jul 2014 - 9:14 am | अत्रुप्त आत्मा
सहज सरळ असे
काव्य भक्तिरूप
मना भावे खूप
वाचताना...
5 Jul 2014 - 9:51 am | आयुर्हित
छान व मनाला भावनारी कविता.
फक्त एक बदल सुचवू इच्छितो:
विष्णुरूपी लीन
होवून जगावे
अंतास उरावे
विष्णूरूप ||
5 Jul 2014 - 10:08 am | कवितानागेश
साधी सोपी गोड कविता. :)
6 Jul 2014 - 9:04 am | किसन शिंदे
आवडलं!
6 Jul 2014 - 9:06 am | मदनबाण
सुरेख... :)
मदनबाण.....
आजची स्वाक्षरी :- Aaj Phir Tumpe Pyaar Aaya Ha... ;) :- Hate Story 2
6 Jul 2014 - 10:10 am | अनुप ढेरे
आवडली कविता.
एक शंका: देवद्वार वृत्त यालाच म्हणतात का?
6 Jul 2014 - 10:20 am | अर्धवटराव
एकदम मनभावन.
6 Jul 2014 - 11:56 am | प्यारे१
सुंदर.
आयुर्हित ह्यांनी सुचवलेला बदल जास्त समर्पक.