माना की आये थे मुठ्ठी बंद करके।
जायेंगे खाली हाथ
कुछ न लाये थे न ले जायेंगे साथ।
लोग कहते है दुनिया
ईक सराय है।
थोडेही दिन रहना है।
मगर सराय का किराया भी
तो हमे ही भरना है।
भरम मत पाल कोई आयेगा।
और खाट पे दे जयेगा।
जीतना दिन रहना है।
तेरा तुझे ही कमाना है।
"कफन मे जेब नही
ना कबर मे अलमारी
सारा यही छोड जाना है ।"
हमे बताते है, फिर ये बताओ
ये खुद क्यूँ कमाते है।
ना जन्नत देखी ना देखी हूर।
ना मालूम ठिकाना है कितना दुर ।
मेहनत ही जिदंगी है।
यही है प्रार्थना और खुदाकी बंदगी है।
झूठ बोलते है झांसाँ देते है।
ठगते है हमे,हमे सीखाते है।
और हमीसे कमाते है।
सभंल जाओ दोस्तो।
इन के चक्कर मे मत आना
गुरू घंटालो से धोखा मत खाना।
२१-१२-२०२०
प्रतिक्रिया
5 Mar 2021 - 9:21 am | कंजूस
तुम्हारी रचना?
5 Mar 2021 - 11:27 am | उपयोजक
पण हिंदीत का?
5 Mar 2021 - 6:06 pm | कर्नलतपस्वी
प्रतीसादा बद्दल धन्यवाद, जवळपास पंचेचाळीस वर्षे हिन्दी भाषी प्रदेशात राहिल्यामुळे जसे आई बरोबरच मावशी सुद्धा तेवढीच आवडते अगदी तसेच. आता सेवानिवृत्त नंतर मराठीत पण लिहीण्याचा प्रयत्न सुरू आहे. भाषा समृद्धी हळू हळू वाढत आहे.
5 Mar 2021 - 10:14 pm | सॅगी
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