वंचनांचे खर्चही पडताळणे आता नव्याने

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विशाल कुलकर्णी in जे न देखे रवी...
2 Feb 2017 - 11:43 am

शोधतो मौनात कविता, वाहणे आता नव्याने
मूळ अस्तित्वास फिरुनी शोधणे आता नव्याने

कोणत्या त्या राऊळी वसतो हरी सांगा गड्यांनो
माणसांच्या अंतरी डोकावणे आता नव्याने

भूक, तृष्णा, वासनाही वाटती कां क्षुद्र आता?
अस्मितेला मृगजळी धुंडाळणे आता नव्याने

तू मला गोंजारणेही सोडले आहे अताशा
वंचनांचे खर्चही पडताळणे आता नव्याने

माणसांना शोधतो मी श्वापदांची कोण गर्दी
लष्कराच्या भाकरी बघ भाजणे आता नव्याने

मोल भक्तीला न उरले, 'जा'च तू येवू नको रे
विघ्नहर्त्या हात जोडुन मागणे आता नव्याने

विशाल कुलकर्णी

मराठी गझलगझल

प्रतिक्रिया

पैसा's picture

2 Feb 2017 - 1:11 pm | पैसा

अप्रतिम रचना!

अनन्त्_यात्री's picture

2 Feb 2017 - 2:26 pm | अनन्त्_यात्री

मीटर + मॅटर दोन्ही सही !

इतक्या सुघड, सुबक, सुरेख कवितेसाठी धन्यवाद.

विशाल कुलकर्णी's picture

2 Feb 2017 - 4:40 pm | विशाल कुलकर्णी

धन्यवाद !

प्रीत-मोहर's picture

2 Feb 2017 - 5:06 pm | प्रीत-मोहर

__/\__

रातराणी's picture

3 Feb 2017 - 12:09 am | रातराणी

सुरेख!

रुपी's picture

3 Feb 2017 - 1:09 am | रुपी

सुंदर!

अत्रुप्त आत्मा's picture

3 Feb 2017 - 7:30 am | अत्रुप्त आत्मा

सल्लाम!

चतुरंग's picture

3 Feb 2017 - 8:14 am | चतुरंग

एकदम कडक गजल!_/\_
आमचा नजराणा पेश आहेच!

-चतुरंग

नेहेमीप्रमाणेच कविता आवडली गड्या रे
'अजून येऊद्या' काय म्हणणे आता नव्याने!

हतोळकरांचा प्रसाद's picture

3 Feb 2017 - 1:04 pm | हतोळकरांचा प्रसाद

मस्त, आवडली!

प्राची अश्विनी's picture

3 Feb 2017 - 2:45 pm | प्राची अश्विनी

सुरेख!

सानझरी's picture

3 Feb 2017 - 2:47 pm | सानझरी

छान!

कपिलमुनी's picture

3 Feb 2017 - 4:44 pm | कपिलमुनी

एकंदरीत मिपावर काव्य विभागात दुष्काळच असतो !
एक काव्य स्पर्धा आय्प्जित करा

विडंबन स्पर्धा आयोजित करा, सगळे कवी तांब्या लेखण्या सरसावून भाग घेतील.

विशाल कुलकर्णी's picture

4 Feb 2017 - 7:50 pm | विशाल कुलकर्णी

लै वेळा.... ;)

बॅटमॅन's picture

4 Feb 2017 - 1:07 am | बॅटमॅन

मस्त लिहिलेय!

मित्रहो's picture

4 Feb 2017 - 7:44 pm | मित्रहो

जबरदस्त रचना

विशाल कुलकर्णी's picture

4 Feb 2017 - 7:50 pm | विशाल कुलकर्णी

मनःपूर्वक आभार मंडळी !

शब्दबम्बाळ's picture

6 Feb 2017 - 10:11 am | शब्दबम्बाळ

छान रचना! आवडली!

राघव's picture

6 Feb 2017 - 10:25 am | राघव

छान लिहिलेयस! :-)

कोणत्या त्या राऊळी वसतो हरी सांगा गड्यांनो
माणसांच्या अंतरी डोकावणे आता नव्याने

भूक, तृष्णा, वासनाही वाटती कां क्षुद्र आता?
अस्मितेला मृगजळी धुंडाळणे आता नव्याने

हे दोन शेर विशेष आवडलेत.

विशाल कुलकर्णी's picture

6 Feb 2017 - 1:02 pm | विशाल कुलकर्णी

धन्यवाद राघव !