देह माझा राहिला ना मी ही कोठे राहिलो
शोधता माझ्या मला मी मुळी न कोठे राहिलो
होत होतो या जगी मी मानवी देहात ना!?
पाश ते सुटले आता अन अस्थि रूपी राहिलो
वाहिलि ती राख माझी पंचप्राणा सोडली
पंचभूतांच्या प्रमाणे त्यातला मी जाहलो
काय मागे ठेविलें मी ते सखे नी सोबती
आज त्यांच्या आठवणितुन रिक्त मी ही जाहलो
यायचे आहे फिरोनि या इथे पुन्हा पुन्हा
जायचे का मग इथोनी???चित्र पाहत राहिलो
रे मना तो मोक्ष कोणा का कधी मिळतो कुठे?
मोक्ष असता जन्म का मग? हेच शोधित राहिलो
संपला हा जन्म इथवर भेटलो पुन्हा कुठे!!!
याद माझी राहिली..तर सत्य-मुक्ति पावलो!
प्रतिक्रिया
26 Nov 2015 - 8:32 pm | जव्हेरगंज
मस्त हो!
26 Nov 2015 - 8:32 pm | अभ्या..
बेस्ट बेस्ट गुर्जी
"चित्र पाहत राहिलो" ह्या ओळीचा अर्थ काही लागेना.
बाकी अप्रतिम रचना.
26 Nov 2015 - 8:40 pm | अत्रुप्त आत्मा
जन्म मृत्युच्या (तथाकथित)चक्रातलि विसंगति ..तीच मनावर उमटलेल ..चित्र पाहत राहिलो!
26 Nov 2015 - 8:49 pm | पियुशा
ओ काय बुवा हे तिकडे ते अकु न इकडे तुम्ही मिपाला घाबरावायच कॉन्ट्रैक्ट घेतल काय :प तरिपन कविता आवडली ऎसे नमूद करते :)
26 Nov 2015 - 9:12 pm | अत्रुप्त आत्मा
नाय ग बाय... कुणाला घाबरवायच नाय...कुठेतरी मनात साठलेली होती...अत्ता बाहेर आली ..इतकेच!
26 Nov 2015 - 8:51 pm | गौरी लेले
सुंदर :)
26 Nov 2015 - 9:08 pm | सतिश गावडे
गौरीशी सहमत.
26 Nov 2015 - 9:14 pm | सूड
+ १
मी पण!!
26 Nov 2015 - 9:26 pm | प्रचेतस
मीही.
27 Nov 2015 - 3:14 pm | बॅटमॅन
मीही.
27 Nov 2015 - 4:57 pm | नाखु
मी सुद्धा......
27 Nov 2015 - 5:17 pm | वपाडाव
मीही
27 Nov 2015 - 5:25 pm | प्रसाद गोडबोले
मीही
27 Nov 2015 - 5:27 pm | सस्नेह
मीपण
26 Nov 2015 - 9:00 pm | रातराणी
सुंदर!!
26 Nov 2015 - 9:18 pm | परिकथेतील राजकुमार
आवडेश एकदम.
26 Nov 2015 - 9:19 pm | अजया
कोण ;)
छान कविता गुरुजी.
26 Nov 2015 - 9:25 pm | कंजूस
हाडाचे कवी.
26 Nov 2015 - 9:25 pm | कंजूस
हाडाचे कवी.
26 Nov 2015 - 9:31 pm | नाव आडनाव
आवडली.
26 Nov 2015 - 9:41 pm | विशाल कुलकर्णी
रे मना तो मोक्ष कोणा का कधी मिळतो कुठे?
मोक्ष असता जन्म का मग? हेच शोधित राहिलो
हे आवडलं ! मस्तच ...
26 Nov 2015 - 10:08 pm | एस
कविता आवडली, कविता म्हणूनही आणि तत्त्वज्ञान म्हणूनही..!
26 Nov 2015 - 10:17 pm | पर्ण
खूप छान
26 Nov 2015 - 10:17 pm | पैसा
सुरेख!
26 Nov 2015 - 10:18 pm | पद्मावति
वाह! सुंदर.
27 Nov 2015 - 12:15 am | एक एकटा एकटाच
वा वा वा!!!!!
27 Nov 2015 - 3:11 pm | नाखु
मस्त कवीता...
यमकी गुरुजींची खमकी कवीता
27 Nov 2015 - 3:14 pm | बॅटमॅन
एक नंबर!!!!
27 Nov 2015 - 3:30 pm | प्रियाजी
कविता खूप आवडली. मनाला अंतर्मूख करून गेली. पण "होत होतो या जगी मी मानवी देहात ना!?" ही ओळ मात्र कळली नाही.
27 Nov 2015 - 3:37 pm | अन्नू
सुंदर कविता. आवडेश ___/\___
27 Nov 2015 - 3:50 pm | चाणक्य
आवडली.
27 Nov 2015 - 5:28 pm | सस्नेह
अंतर्मुख करणारी कविता !
अवांतर : बुवा लैच्च शिरेस झाले बॉ !
27 Nov 2015 - 5:29 pm | विश्वव्यापी
सुंदर कविता
28 Nov 2015 - 2:58 pm | पालीचा खंडोबा १
काय मागे ठेविलें मी ते सखे नी सोबती
आज त्यांच्या आठवणितुन रिक्त मी ही जाहलो
वाचून खुळा झालो ह्या दोन कडव्यात सगळे सार आहे हो
28 Nov 2015 - 3:11 pm | कविता१९७८
मस्त
28 Nov 2015 - 11:46 pm | अत्रुप्त आत्मा
सर्व वाचक प्रतिसादकांना धन्यवाद
2 Dec 2015 - 6:10 pm | पिंगू
वाह. जीवनचक्रा ही तुझी कहाणी..