मूळ प्रेरणा: काॅफी ही निमित्तमात्र..
(मूळ कवयित्री प्राची अश्विनी यांची माफी मागून)
मग पुढे असं होतं की ..
दातामधलं अंतर वाढत जातं.
डोळ्यामधला नंबर वाढत जातो.
बोळक्यामधलं हसू निवत जातं...
नावं होतात विसरायला..
आणि घरचे लागतात रागवायला..
फुफ्फुस लागतं धापा टाकायला..
असं होऊ नये म्हणून भेटायचं..
डॉक्टर हा निमित्तमात्र..
प्रतिक्रिया
28 Mar 2019 - 8:53 am | प्रचेतस
=))
28 Mar 2019 - 9:00 am | यशोधरा
=))
28 Mar 2019 - 2:59 pm | सस्नेह
=)) =))
28 Mar 2019 - 7:26 pm | प्राची अश्विनी
:)) मस्त!
29 Mar 2019 - 2:27 am | सोन्या बागलाणकर
मनमोकळ्या प्रतिसादाबद्दल धन्यवाद!
आणी हलके घेतल्याबद्दलही =))
30 Mar 2019 - 1:50 pm | श्वेता२४
.
6 Jul 2019 - 5:06 pm | इरामयी
:) :) :) :) :)
6 Jul 2019 - 5:43 pm | गड्डा झब्बू
फुफ्फुस लागतं धापा टाकायला.. :-))
6 Jul 2019 - 6:11 pm | डॉ सुहास म्हात्रे
=))
6 Jul 2019 - 7:30 pm | नाखु
आणि वास्तव समोर मांडले आहे